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” सिर्फ एहसास है ये “

” वसुधा ” करवट ले कर लेटी हुई वसुधा के कंधे को हाथ लगाते हुए श्रेय ने बहुत हल्की आवाज में पुकारा।

” बोलिए । ” वसुधा ने बिना पलटे ही जवाब दिया ।

” क्यों , अपने आप से इतना लड़ रही हो । जिस दर्द को महसूस कर रही हो उस दर्द को आंखों से बह जाने दो । ” श्रेय ने अपनी ठोडी वसुधा के कंधे पर रखते हुए कहा ।

” ऐसा कुछ नहीं है श्रेय , आप सो जाइए । सुबह आपको जल्दी निकलना भी है । ” वसुधा की आवाज बिल्कल सर्द थी ।

” जाना है …….मतलब आप नहीं चलेंगी सुबह । ” श्रेय ने अपनी ठोडी से ही वसुधा के कंधे को थपथपाते हुए कहा ।

” न ” वसुधा ने न में सिर हिलाते हुए कहा ।

” वसुधा , सारांश जितना हमारा दोस्त था , उससे ज्यादा करीब वो आपके साथ था । इस बात को आप भी जानती हैं और हम भी । ” श्रेय ने बेहद प्यार से वसुधा से कहा । ” वसुधा हमारी तरफ देख कर बात कीजिए।”

” बोलिए । ” वसुधा ने श्रेय की तरफ करवट लेते हुए कहा ।

” कुछ पूछा था हमने । ” श्रेय वसुधा से फिर एक सवाल करता है ।

” श्रेय हमे नहीं पता , कुछ भी नहीं पता । ” वसुधा की आंखे गीली हो रही थी ।

” वसुधा कितने साल हो चुके हैं हमारी शादी को , पता है ना आपको । ” श्रेय ने वसुधा की पलकों से आंसू अपनी उंगली पर समेटते हुए कहा ।

” हूं , तीस साल ” वसुधा ने बहुत धीमी से बोला ।

” और आपको अभी भी लगता है की हम आपको नहीं समझते हैं । ऐसा ही है ना । ” वसुधा के चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच में लेते हुए श्रेय ने उसकी नाक पर होंठ रखते हुए कहा ।

” आपके जितना तो शायद हम खुद भी खुद को नहीं समझ पाए है श्रेय । आप पति से ज्यादा हमारे गुरु और मार्गदर्शक रहे हैं । ” वसुधा ने अपने चेहरे पर रखी श्रेय की हथेली पर अपनी हथेली रखते हुए कहा।

” फिर क्यों अपनी आंखों के बांध में अपने दर्द को बांध रही हैं आप , वसुधा सारांश अगर हमारा बचपन का सबसे करीबी दोस्त था तो आपका प्रिय सखा भी तो था , जिसके साथ आपने अपनी साहित्यिक जिंदगी के जाने कितने मुकाम पार किए थे ।” श्रेय ने वसुधा की आंखों में देखते हुए कहा ।

” श्रेय क्या चाहते हो आप , मैं अपने आप को दुबारा उसी चौराहे पर ला कर खड़ा दूं जहां हर उंगली मेरी तरफ ही उठी हो । नहीं श्रेय , अब और हिम्मत नहीं रह गई है मेरे अंदर । ” वसुधा ने श्रेय की हथेली से अपने चेहरे को अलग करते हुए कहा ।

” मतलब , मैं ये मान लूं की मेरी वसुधा की कलम हार गई । ” श्रेय ने तकिए की टेक लगा कर बैठते हुए कहा।

” वसुधा की कलम नहीं हारी है , वसुधा हार गई है किसी और से नहीं अपने आप से । ” वसुधा ने भी पलंग की टेक ले कर बैठते हुए कहा ।

” मगर क्यों , तुम हारना क्यों चाहती हो अपने आप को , अपने अस्तित्व को , अपने सखा को । वसुधा नहीं देख पाओगी तुम उसे कल के बाद दुबारा । जिद मत करो । ” श्रेय ने वसुधा की साड़ी के पल्ले से खेलते हुए कहा ।

” क्या करना है श्रेय , मेरी आंखों ने बहुत साल पहले ही उसे देखने की आदत छोड़ थी । ” वसुधा की आवाज में एक शांत कंपन था ।

” मगर तुम्हारी कलम ने तो उसकी आदत नहीं छोड़ी।” श्रेय अभी भी वसुधा की साड़ी के पल्ले से खेल रहा था ।

“श्रेय , प्लीज …………………..

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” अरे , ये सारांश कहां हैं । ” ड्रिंक्स के बीच में किसी ने पूछा ।

” बैठा होगा कहीं अपनी कागज़ कलम के साथ । ” नारायण ने अपना गिलास भरते हुए कहा ।

” अजीब बंदा है यार , छुट्टियों पर चिल करने आया है और गायब , यही करना था तो अकेला ही आ जाता।”

सारे दोस्त सारांश की नस नस से वाकिफ थे ।

” आप लोग सारांश को एक मैसेज दे देंगे । ” मालविका और औरतों के साथ खड़ी थी ।

” क्या “

” उसको बोलना अपना फोन चार्ज करके रखा करे ।उसे बोल देना हम सब लेडीज शॉपिंग के लिए जा रहे हैं । ” मालविका काली शॉर्ट ड्रेस में बहुत सेक्सी लग रही थी । सारांश और मालविका की शादी को अभी दो साल ही हुए थे , दोनो मस्त और बिंदास थे अपनी अपनी तरह , मालविका जहां आए दिन किसी न किसी इवेंट के कारण पेज फोर पर होती थी , सारांश की काव्य गोष्ठियां उसे जानें किस किस जिले ,कस्बे में घुमाते रहते थे । मगर थे दोनो एक दूजे के लिए ।

” वसुधा नहीं जा रही । ” श्रेय ने मालविका से पूछा ।

” नहीं , उसे कोई शॉपिंग नहीं करनी और फिजूल में मार्केट में उसे घूमना नहीं है । यार क्या बीबी है तेरी , वाइन की बोतल , मोटी सी एक किताब और शमशाद बेगम की गजलें , उसे और कुछ नहीं चाहिए । सही में यार क्लास अपार्ट है वो तो । ” मालविका ने श्रेय के कंधे पर हाथ मारते हुए कहा ।

” बिलकुल तेरे पति की तरह ” श्रेय ने मालविका को मुस्कुराते हुए जवाब दिया ।

” प्लीज , मेरे पति से पहले वो तुम्हारा बचपन का दोस्त है , मुझे तो कभी कभी ऐसा लगता है जैसे तुम सोच समझ  के अपने दोस्त की कार्बन कॉपी लाए  हो  । ” मालविका ने श्रेय के गिलास से लंबा सा घूंट वोदका का लेते हुए कहा । ” चलो बाय , डिनर पर मिलते हैं ।”

” चल बाय । मिलते है शाम को । ” मालविका और लेडीज के साथ बाहर निकलते हुए बोली ।

” क्या कॉम्बिनेशन है तुम चारों का । ” नारायण ने ठहाका लगाते हुए कहा ।

” चिल यार , तू तो अपना पैग लगा । ज्यादा दिमाग मत खर्च कर इन बातों में। “

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” श्रेय , आज शाम को सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम में भूपेन हजारिका का एक प्रोग्राम हो रहा है  , आप चलेंगे क्या । ” वसुधा ने श्रेय को फ्रेश जूस का गिलास पकड़ाते हुए कहा ।

” मैं चल सकता हूं , मगर मेरे पल्ले कुछ भी नहीं पड़ना । कितने बजे पहुंचाना है।” श्रेय ने टोस्ट की बाइट लेते हुए कहा ।

” वो तो मुझे पता है , मैं अकेली ही चली जाती हूं , कोई बात नहीं । ” वसुधा ने टोस्ट पर मक्खन लगाते हुए कहा ।

” यार , चल रहा हूं ना । बोल ना सिरी फोर्ट कितने बजे । ” श्रेय ने वसुधा के हाथ से टोस्ट लेते हुए कहा ।

” इट्स ओके , श्रेय । जरूरी साथ जाना नहीं , एक दूसरे की पसंद नापसंद को स्वीकारना होता है । मैं भी कौन सा तुम्हारे साथ वो वाहियात अंग्रेजी फिल्में देखने जाती हूं । ” वसुधा ने अपना टोस्ट चाय में भिगोते हुए कहा ।

” वो वाहियात नहीं होती हैं बस तुम्हे समझ नहीं आती हैं तुम्हारे इस हुपेन बजारका की तरह । ” श्रेय ने वसुधा को छेड़ा ।

” क्या , क्या कहा तुमने , हूपेन बाजारका । ” वसुधा के हाथ से हंसते हंसते चाय का कप छलक गया , उसने जल्दी से अपनी बगरू प्रिंट की धोती के पल्ले से अपने होंठ और टेबल की कगार को पौंछते हुए कहा । ” सॉरी , सॉरी ,सॉरी ” वसुधा को जैसे ही एहसास हुआ उसने क्या किया है , वो झेंप गई ।

” सॉरी क्यों , क्या गलती है , जरूरी तो नहीं हर इंसान हम आर्मी वालों की तरह हर वक्त फॉर्मल ही रहे । ” श्रेय ने अपनी काफी का आखिरी घूंट लेते हुए कहा ।

” मगर जो गलत है वो गलत है । मैं कोई बच्ची थोड़ी हूं । ” वसुधा ने अपनी नजरों को झुकाते हुए कहा  ।

” वसुधा , तुम अपनी कलम की तरह हो , मस्त , बिंदास अपने दिल से जीने वाली और ये तुम्हारी खासियत है । प्लीज कभी भी बदलना मत ।” श्रेय ने ब्रेकफास्ट टेबल से उठते हुए कहा ।

” चलो , अब ज्यादा नाटक मत करो वरना लेट हो जाओगे । ” वसुधा ने अपने बाल बांधते हुए कहा ।

” ठीक है , चलता हूं । प्लीज अर्दली को बोलो मेरा बैग गाड़ी में रख दे । ” श्रेय ने  अपनी कैप उठाते हुए कहा ।

”  चलो , फिर लंच टाइम में फोन पर बात करते हैं । ” वसुधा ने अर्दली को आवाज लगाते हुए कहा ।

श्रेय हल्के से अपने होंठ वसुधा के गालों पर लगाता हुआ बाहर निकल जाता है ।

” वसुधा , क्या कर रही हो । खाना खा लिया । ” श्रेय ने फोन पर वसुधा की आवाज सुनते ही कहा ।

” यार किताब पढ़ते पढ़ते नहाना भूल गई , अब जा रही हूं फिर जल्दी से लंच करके निकलती हूं । ” वसुधा ने फोन के दूसरी तरफ खिलखिलाते हुए कहा ।

” मुझे पता था , जब तक पूरी किताब चाट नहीं लोगी , खाना नहीं खाओगी । Appitiser है तुम्हारा ।” श्रेय ने अपना लंच का डिब्बा बंद करते हुए कहा ।

” तुमने खा लिया न ,कैसा था । ” वसुधा ने शायद लंच बॉक्स बंद होने की आवाज सुन ली थी ।

” अच्छा था , मगर अकेले बोरिंग था । ” श्रेय ने जवाब देते हुए कहा ।

” क्यों , सारांश कहां है । ” वसुधा ने हैरानी से पूछा ।

” वो तुम्हे लेने पहुंच रहा है , जल्दी से तैयार हो जाओ । ” श्रेय ने हंसते हुए कहा ।

” मुझे लेने , क्यों । ” वसुधा ने हैरानी से पूछा ।

” हां उसे भी तुम्हारे उस हजारिका के प्रोग्राम में जाना था  मैंने उसे कहा तुम भी जा रही हो , खुश हो गया बोला मैं अपने साथ ले जाता हूं साथ हो जाएगा ।” श्रेय ने मुस्कुराते हुए फोन पर कहा ।

” मगर , ऐसे अच्छा  लगता है क्या । ” वसुधा ने थोड़ा असहज होते हुए कहा ।

” यार , कहां तो इस्मत चुगताई और मंटो पढ़ती हो कहां ये बच्चों सी बातें । मस्त रहो । अब जा कर रेडी हो जल्दी से।” श्रेय ने फोन काटते हुए कहा ।

…………

धीरे धीरे वसुधा और सारांश की नजदीकियां बढ़ती चली गईं  और इन नजदीकियों को अगर कोई समझ पाया तो वो श्रेय था । अजीब बात थी जिसे इन नजदीकियों से सबसे ज्यादा फर्क पड़ना चाहिए था उसे तो कोई फर्क पड़ा नहीं हां, मगर दूसरे  लोगों को हाथ सेकने का अच्छा मौका मिल गया था ।

मगर शायद मालविका इस रिश्ते को श्रेय की तरह नहीं समझ पाई थी , शायद किसी भी आम इंसान के लिए इस रिश्ते को समझना या समझने की कोशिश भी करना एक बहुत बड़ी बेवकूफी के अलावा और कुछ भी नहीं था ।

मालविका और सारांश के रिश्ते में इस दोस्ती को लेकर जहां दरारें पड़नी शुरू हो चुकी थीं ,वहीं वसुधा और श्रेय का रिश्ता बेहद मजबूत होता जा रहा था ।

जहां वसुधा की कई किताबें छप कर मार्केट में आ चुकी थीं वहीं सारांश की शायरी शराब में डूबने लगी थी जो कम से कम वसुधा को तो बिलकुल बर्दास्त नहीं था  ।

” श्रेय , तुम सारांश को समझाते क्यों नहीं हो , क्यों अपनी जिंदगी अपनी कला के साथ खिलवाड़ कर रहा है ।” डाइनिंग टेबल पर डिनर करते समय वसुधा ने श्रेय से कहा ।

” वसु तुम्हे क्या लगता है मैंने अपने यार को समझाया नहीं होगा , मगर अब वो समझने समझाने की हद से बहुत बाहर जा सकता । अब उसे इस दलदल से बाहर खींचना पड़ेगा और वो काम सिर्फ और सिर्फ तुम ही कर सकती हो कोई और नहीं । ” श्रेय रोटी का कौर अपने मुंह में रखते हुए वसुधा से कहता है ।

” मगर तुम्हे ऐसा क्यों लग रहा है श्रेय , मुझसे पहले वो आपका दोस्त है और मुझसे बेहतर आप उसे समझा सकते हो  ” वसुधा ने बेहद चिंतित स्वर में कहा।

” वसु , देख ले यार , मैं तो सिर्फ रिक्वेस्ट कर सकता हूं बाकी तेरी मर्जी । ” श्रेय ने नैपकिन से अपने होंठ साफ करते हुए कहा।

” श्रेय एक काम करती हूं , मैने सारांश की कुछ गजलें कंपाइल करके रखी हैं बहुत टाइम से सोच रही थी उन्हे प्रिंट करवा दूं , इसी बहाने से सारांश से मुलाकात भी हो जाएगी और शायद उसके दिल में क्या चल रहा है पता भी चल जाएगा। ” वसुधा ने सारी प्लेट्स एक जगह इकट्ठे करते हुए कहा ।

“ओके , ठीक है ” श्रेय पानी का घूंट भरते हुए वसुधा की बात का जवाब देता है । वो इस समय एकटक वसुधा के कानो के झुमके को देख रहा था जो धीरे धीरे हिल कर वसुधा के दिल की धड़कनों का हाल बता रहे थे ।

श्रेय ने elexa को एक गाने की रिक्वेस्ट करी और माहौल में लता जी की मखमली आवाज फैलती चली गई

” हमने देखी है उन आंखों की महकती खुश्बू, हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्जाम न दो । “

काश जिंदगी कभी इन गानों की तरह हो पाती । यही तो जिंदगी की त्रासदी है की उसे बार बार अपनी सच्चाई का सबूत देना पड़ता है और हर बार इंसानों की इस अदालत में हारती सच्चाई ही है क्योंकि रिश्तों के पास अपनी सच्चाई सबित करने के लिए  एहसासों के अलावा कोई और सबूत नहीं होता है और अदालतें चाहे कानून की हो या समाज की उन्हीं सुबूतों को मानती हैं जो आंख से दिखते हैं ।

……………………………………….

उस दिन मालविका शायद बाजार गई हुई थी । श्रेय सुबह ऑफिस जाते समय वसुधा को सारांश के घर छोड़ता हुआ निकल जाता है इसमें कोई नई बात नहीं थी ऐसा श्रेय अक्सर करता था खासकर जब वसुधा कोई नई किताब पढ़ कर चुकी होती थी या उसने कुछ नया लिखा होता  और उसके अंदर बहुत कुछ जमा हो चुका होता है बाहर निकालने के  लिए , ऐसे में श्रेया और सारांश का कॉम्बिनेशन परफेक्ट था ।

उस दिन मालविका शायद अपने पैरेंट्स के यहां गई हुई थी , सारांश का रात का हैंग ओवर उतरा नहीं था , श्रेय से इस तरह काम को अवॉइड करने का लेक्चर सुनने के बाद सारांश वसुधा को लेकर बेडरूम में ही आ गया था ।

” सारांश आज कल तुम मुझे भी बहुत ज्यादा अवॉइड कर रहे हो , जबकि तुम्हे पता है मेरी नई किताब खत्म होने वाली है और  उसे प्रिंटिंग में देने से पहले मुझे उसे तुम्हारे साथ  डिस्कस करना कितना जरूरी है । ” वसुधा ने अपना बैग स्टडी टेबल पर रखते हुए कहा ।

” वसुधा मेरी इतनी आदत मत डालो की अगर मैं ना रहूं तो तुम्हारी किताब अधूरी ही रह जाए । ” सारांश  बाथरूम में जाते हुए वसुधा की बात का जवाब देते हुए कहता है  ।

” क्यों तुम कहां जा रहे हो ? तुम्हें पता है ना मेरी हर किताब श्रेय को बता कर शुरू होती है और तुम्हे पढ़ा कर पूरी ।अगर ऐसा नहीं होता है तो अधूरी कहानियां पढ़ने वालों को बेशक वो किताब  बहुत अच्छी लगें मगर मुझे अधूरी ही लगती हैं । ” वसुधा खिड़की के पर्दे हटाते हुए कहती है , अंधेरे बोझल कमरे में अचानक रोशनी फैल जाती है ।

” नहीं वसुधा अब शायद वक्त आ गया है जब तुम्हे सारांश और श्रेय की इन जिल्दों से बाहर आना होगा । ” सारांश  बाथरूम के अंदर से ब्रश करते करते कहता है ।

” तुम रेडी हो जाओ मैं चाय बना कर ला रही हूं । ” वसुधा बोलते बोलते  अपने गले का दुपट्टा उतार कर पलंग पर डालते हुए कमरे से बाहर निकल जाती है ।

सारांश बाथरूम से बाहर आ कर वसुधा के बैग के साथ रखी फाइल उठा कर पलंग पर बैठ जाता है ।

” वसुधा नॉट done यार ” वसुधा के चाय ला कर पलंग पर रखते ही सारांश वसुधा से कहता  है ।

” ………” वसुधा बिना कुछ बोले सिर्फ मुस्कुरा देती है ।

” मुस्कुराओ नहीं वसुधा , तुम्हे पता है मैं सिर्फ और सिर्फ अपने लिए लिखता हूं , मैं उसे दुनिया के साथ  शेयर नहीं कर सकता हूं । वैसे भी लोग कहां समझते हैं ये सब ” सारांश अपनी चाय का कप उठाते हुए कहता है ।

” सारांश  पहली बात तो अपने आप में जीना बंद करो , तुम्हारे बाहर भी एक दुनिया है ये बात अलग है की उस दुनिया में ज्यादातर लोग तुम्हे नहीं समझेंगे , मगर ये तो कोई कारण नहीं हुआ उन लोगों को भी खुद से दूर करने की जो तुम्हे समझते हैं । ” वसुधा पलंग पर तकिए की टेक लगाते हुए कहती है ।

” वसुधा बहुत तकलीफ होती है जब तुम्हारे अपने , तुम्हारे सबसे करीबी लोग भी तुम्हे समझने से इंकार कर देते हैं । ” चाय का घूंट भरते हुए सारांश  वसुधा से कहता है , इस समय उसकी आवाज में एक नमी सी थी ।

” इसमें गलती उनकी नहीं है तुम्हारी है सारांश , जब तक तुम ये नहीं समझोगे की हर इंसान की रिश्तों को समझने की एक सीमा होती है उसके परे के रिश्ते और एहसास उन्हे समझ नहीं आते हैं ।” वसुधा थोड़ा सा आगे बढ़ कर सारांश की हथेली पर अपनी हथेली रखते हुए कहती है ।

” मगर वसुधा बहुत तकलीफ होती है इन सबसे । ” सारांश अपनी दूसरी हथेली वसुधा की हथेली पर रखते हुए पता नहीं क्या सोचते हुए कहता है ।

” ये तकलीफ हमारी अपनी क्रिएट करी हुई होती है सारांश । एक आम रिश्ता इसी तरह जीता है जिस तरह तुम्हारी हथेली के बीच में मेरी हथेली  । लोगों के लिए रिश्ता एहसास नहीं एक अलमारी के दो दरवाजे होते हैं जिन्हें साथ रखने के लिए एक ताला लगाना जरूरी नहीं होता है । मगर हम ऐसा ही करते हैं किसी का हल्का सा साथ मिलते ही उसे ऐसे जकड़ लेते हैं जैसे तुमने इस समय मेरी हथेली को अपनी दोनो हथेली के बीच में जकड़ा हुआ था , जैसे मेरी हथेली तुम्हारी हथेलियों की पकड़ से पसीज रही है उसी तरह बंद अलमारी के अंदर रखे एहसास भी सीलने लगते है उन्हे जमाने की धूप दिखाना बहुत जरूरी होता है । ” वसुधा अपनी हथेली सारांश की हथेली के बीच से बाहर निकालते हुए कहती है ।

” नहीं वसुधा तुम जो चाहती हो कम से कम मेरे रहते तो नहीं हो सकता , मैं अपने जज्बातों का मजाक बनने नहीं दूंगा , तुम्हे मेरी कसम है मेरे जीते जी इसे पब्लिश मत करना । ” सारांश की आंख से आंसू की एक बूंद टपक कर चाय के मग में गिर जाता है ।

” सारांश पागल है , रो रहा है । ऐसा क्या हो गया है , प्लीज मुझे बता ना मैं और श्रेय तो तुम्हारी जान की तरह हैं । ” वसुधा अपनी जगह से उठ कर सारांश के बालों में उंगलियां फेरते हुए कहती है ।

” यही तो प्रॉब्लम है वसुधा , कुछ रिश्ते लोगों को समझ ही नहीं आते हैं  और कुछ रिश्ते इन्हे ना समझने की वजह अपने आप को खत्म कर लेते हैं । ” सारांश वसुधा की हथेलियों को अपनी हथेलियों में पकड़ते हुए कहता है ।

” तुम कहना क्या चाह रहे हो सारांश , प्लीज खुल कर बताओ ना । ” वसुधा सारांश की इन बातों से बैचेन होते हुए कहती है।

” अरे अगर वसुधा को ही आना था तो मुझे साफ साफ बता देते , कम से कम तुम्हारे साथ सुबह इवेंट में चलने की जिद  करके मैं इतना सिर तो नहीं फोड़ती  ।” अचानक मालविका कमरे में दाखिल होते सारांश और वसुधा को इस तरह देख कर व्यंग करते हुए कहती है ।

” मालविका प्लीज यार , मैं तो बस सारांश से मिलने ही आई थी , वो कुछ अपसेट लग रहा था इसलिए ……….” वसुधा अपने आप को संभालते हुए मालविका से कहती है ।

” अच्छा मुझे तो सुबह नहीं बताया की मूड खराब है , मूड खराब है की बीवी की तरक्की से जलन हो रही है और तुम जैसी पढ़ने लिखने वाली औरतों को अपनी मर्यादा का कुछ अंदाजा ही नहीं होता क्यों हर किसी की जिंदगी तुम्हारे लिए एक कहानी की तरह होती है जिसे तुम लोग अपने हिसाब से तोड़ते या फिर जोड़ते हों। ” मालविका ड्रेसिंग टेबल पर अपना बैग रख कर पलंग के एक कोने में बैठते हुए कहती है ।

” मालविका स्टॉप इट, यू should know your limits । ” इससे पहले की वसुधा कुछ बोले सारांश मालविका और वसुधा  के बीच में आते हुए कहता है ।

” Oh really it’s me who should know my limits , not her , जो दूसरों के घरों में मुंह मारती फिरती है । ” गुस्से से मालविका की आवाज कांपने लगी थी ।

इसके बाद सब कुछ उसी तरह होता चला गया जैसा अमूमन जंग लगे रिश्तों में होता है ।

ना वसुधा ने खुद कोई सफाई दी ना श्रेय को अपनी तरफ से कोई सफाई देने दी। सारांश ने वापस अपने आप को अपने जिस्म के ताबूत में जैसे बंद कर लिया ।

सफेद चादर पर अगर एक दाग पड़ जाए तो जमाने की नजरें उसी दाग पर जाती हैं चादर की सफेदी पर नहीं , यही वसुधा के साथ हुआ मगर वसुधा के साथ श्रेय था जिसने वसुधा को टूटने नहीं दिया ।

………………………….

हाल में सफेद कपड़े में लिपटा सारांश का शरीर रखा हुआ था , उसके चेहरे पर जाते जाते पुरानी मुस्कान जैसे वापस आ ही गई थी ।

श्रेय का हाथ पकड़ कर अंदर दाखिल हुई वसुधा के बालों की सफेदी उसके चेहरे पर भी उतर आई थी ।

सारांश के पार्थिव शरीर के बगल में बैठे लोगों की नजर जैसे ही वसुधा पर पड़ती है उनकी आंखों से एक प्रश्न बिखरी हुई मालविका की आंखों तक पहुंच जाता है ।

वसुधा श्रेय की हथेली छोड़ कर सारांश के पांव में झुकती है और अपने सारांश की किताब की पहली कॉपी उसके पैरों में रख देती है सारांश की तरफ देखते हुए वसुधा अपने हाथ में पहनी हुई दो चूड़ियों में से एक चूड़ी उतार कर उस किताब पर रख देती है और पलट कर पीछे खड़े श्रेय की तरफ देख कर उसकी बड़ी हुई हथेली का सहारा ले कर खड़ी हो जाती है ।