वक्त के कुछ पीले पड़े लिफाफों में ,
यादों की कुछ तहरीरें ,
आज फिर बाहर आने को ,
छटपटाने लगी हैं ।
सोचता हूं अबकी बारिश में ,
इन्हे कागज की नाव बना कर बहा ही दूं ।
दिल की अलमारी भी अब अक्सर ,
अपनी ही चाभी से खुलती नहीं है ,
आंखों में बैठी चुड़ैल भी
अब इन यादों पे झपटती नहीं है ।
जानता हूं बड़ी शिद्दत से हमने
ये कुछ तस्वीरें बनाई थीं ,
कुछ तुम्हारी हंसी ने ,
थोड़ी मेरी उदासी ने ,
कुछ तुम्हारे उलझे हुए बालों ने ,
कुछ मेरी इंतजार में बुझती हुई सिगरेट ने ,
मिल कर शायद ये कुछ
तस्वीरें रंगी थीं ,
मगर अब जब वक्त की आंखों में
उम्र का मोतियाबिंद उतर आया है ,
सोचता हूं इन सब यादों को खुद से
दूर बेहद दूर कर दूं ,
तुम्ही तो कहा करती थीं ,
आखरी वक्त साथ बचे कुछ निशान ,
अगली उम्र में बहुत ,
भटकाते हैं ।
सच कहूं,
तो शायद अब मैं भी नहीं चाहता ,
की तुम मुझे पाने की ख्वाहिश में ,
खुद को बार बार खोती रहो ।”
निखिल
२२/०९/२२