छोड़ के घगरा छोड़ के चोली ,
बिना देह मैं पिया संग होली ,
सखा ले चल अब उसपार ,
सखा संग ले चल तू उसपार ।
छोड़ के बाबुल के सब जेवर ,
पांच सांस छोड़ के पीहर ,
ले चल तू ससुराल ,
सखा संग ले चल तू उस पार ।
मोल भाव मुझसे न होवे
बिना मोल के ले चल मोहे ,
अब बैठूं न बाजार ,
सखा संग ले चल अब ससुराल ।
क्या खोया और क्या पाया ,
क्या था वो जो मैने कमाया ,
गवाऊं ना मेंहदी रचे बस हाथ ,
सखा संग ले चल तू उस पार ।
कब मैं जी थी जो आज मरूंगी ,
स्वप्न था सब घर द्वार ,
मुझे ले चल राह के पार ,
सखा संग ले चल तू ससुराल ।
क्या काबा क्या मथुरा काशी ,
मैं तो कोई रीत न जानी ,
बनकर प्रियतम आज
सखा संग ले चल तू ससुराल ,
देह बिना मोहे
सखा संग ले चल तू उस पार ।।
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