Nikhil Kapoor

Writer | Poet | Storyteller | Artist | Fashion Designer | Actor 

Writer | Poet | Storyteller | Artist | Fashion Designer | Actor 

Nikhil Kapoor

Nikhil Kapoor is a writer, poet, storyteller, artist, actor and a fashion designer.

He loves to write about the mundane topics of everyday life – work, love, relationships in a way that his readers can relate to.

For him a page is like his friend, in front of whom he can truly be himself.

Books

Woh-Sachi-Badnam-Auratein

वो "सच्ची" बदनाम औरतें

ये पुस्तक समर्पित हर उस औरत को , बचपन से आज तक जिसने मेरे जीवन पथ को कभी न कभी , कहीं न कहीं से स्पर्श किया है और अपनी एक छाप छोड़ी है । रिश्ता बहुत छोटी चीज़ है , इनके साथ कोई संबंध न होते हुए भी एक रिश्ता बन ही गया जो इन पन्नों पर आ फैला है ।

इससे ज्यादा कुछ नहीं , शेष सब आपके लिए …

मायने?

हर रिश्ते, हर बात, हर खुशी हर दर्द के “मायने” खोजते खोजते जिंदगी कब हांथों से फिसल जाती है, पता ही नहीं चलता।

क्यूं? कैसे? किस लिए? जिंदगी हर पल सिर्फ इन्हीं प्रश्नों का कौर तोड़ती रहती है और गुजरती रहती है। क्या जरूरी है हर रिश्ते का कोई कारण होना, कोई नाम होना, कोई बेंच मार्क होना। क्यूं आखिर ये प्रश्न वाचक चिन्ह क्यूं। हर रिश्ते के होने, ना होने की वजह क्यूं?

Mayane? / मायने?
Aaj-Kuch-Sadkon-ne-Karwatein-Li-Hai (1)

आज कुछ सडकों ने करवटें ली हैं

‘अदृश्य’ की चाहत में भागती ज़िंदगी के हाथों से जाने कितने रिश्तों की डोर छूटी, जाने कितने रिश्तों ने गाँठ खोलकर तेज़ क़दम बढ़ा लिए, कुछ फंदे उलझकर गाँठ बन गए, कुछ समय की सलाई से छूट गए। कहते हैं चटके हुए घड़े के चारों तरफ़ रस्सी लपेट दो तो हल्का-हल्का पानी रिस-रिसकर उसकी ठंडक बनाए रखता है।

बस कुछ इसी तरह वक़्त के कुछ टुकड़ों को याद की कच्ची रस्सी से लपेट दिया और रिसने के दर्द की स्याही काग़ज़ों पर बिखरती रही, शब्द बनती रही और ज़िंदगी चलती रही। इन पन्नों में जो भी कुछ हैं उन्हें कविता तो नहीं कहा जा सकता, बस कुछ पल हैं जो सुस्ताने को ठहर गए हैं।

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